Friday, January 2, 2015

हैप्पी न्यू यर


कुछ पुराना सामान समेट कर घर के बाहर रखा है,
कुछ लम्हे, जो यूँही रह गए बिना खर्च किये,
एक्सपायरी डेट जो आ चुकी थी उनकी,
और कुछ यादें जो सील गयी है, खट्टी हो गयी है,
कुछ तजुर्बे जो रद्दी की तरह कोने में पड़े थे,
और अब तजुर्बो का नया एडिशन आ गया है,
कुछ सोच, जो बोझ सी बनकर रोक रही थी मुझे,
कुछ खोखली ख्वाहिशो की खाली बोतले,
जिनमे फिर से नया जोश भरने की गुंजाईश अब रही नहीं,
चंद भारी से टूटे हुए रिश्ते, मानो टूटी सी मेज खुर्सियाँ,
जो मन तो नहीं फेकने का, यादें जो है; पर मरम्मत हो नहीं सकती उनकी,

और जब पलट के झाँका घर के अंदर,
कितनी जगह बन गयी थी,
नए रिश्तों के लिए, नए सपनो की खातिर,
अलमारी में कितने नए अरमान, कुछ नए वादो की जगह थी
दीवार पर खाली फ्रेम में नयी यादों की जगह थी,

आखिर कुछ पुराना जाए, कुछ नया आये, तभी तो लगता है "हैप्पी न्यू यर"


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