Monday, April 1, 2013

Waseem Barelvi - mitti ke gharonde...


ज़हन में पानी के बादल अगर आये होते 
मैंने मिटटी के घरोंदे ना बनाये होते 

धूप के एक ही मौसम ने जिन्हें तोड़ दिया 
इतने नाज़ुक भी ये रिश्ते न बनाये होते 

डूबते शहर मैं मिटटी का मकान गिरता ही 
तुम ये सब सोच के मेरी तरफ आये होते 

धूप के शहर में इक उम्र ना जलना पड़ता 
हम भी ए काश किसी पेड के साये होते 

फल पडोसी के दरख्तों पे ना पकते तो वसीम 
मेरे आँगन में ये पत्थर भी ना आये होते 

Raahat Indori: Meaningful composition

हर एक चेहरे को ज़ख़्मों का आईना न कहो|
ये ज़िन्दगी तो है रहमत इसे सज़ा न कहो|

न जाने कौन सी मज़बूरीओं का क़ैदी हो,
वो साथ छोड़ गया है तो बेवफ़ा न कहो|

तमाम शहर ने नेज़ों पे क्यूँ उछाला मुझे,
ये इत्तेफ़ाक़ था तुम इस को हादसा न कहो|

ये और बात कि दुश्मन हुआ है आज मगर,
वो मेरा दोस्त था कल तक उसे बुरा न कहो|

हमारे ऐब हमें उँगलियों पे गिनवाओ,
हमारी पीठ के पीछे हमें बुरा न कहो|

मैं वक़ियात की ज़न्जीर का नहीं क़ायल,
मुझे भी अपने गुनाहों का सिलसिला न कहो|

ये शहर वो है जहाँ राक्षस भी है "राहत",
हर एक तराशे हुये बुत को देवता न कहो|